Bihar Board Intermediate Biology Subjective :
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जीवों में अलैंगिक जनन के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर : जीवों के प्रजनन की वह विधि जिसमें एक जनक से नई व्यष्टि का जन्म होता हो अलैंगिक जनन कहलाता है। इसमें जनन कोशिकाओं (युग्मकों) का निर्माण एवं संलयण नहीं होता है। यह जनन प्रायः निम्न श्रेणी के जीवों जैसे- अकोशिकीय जीव, सरल पादप एवं जंतुओं में होता है।
प्रकार : यह द्विविभाजन, बहुविभाजन, मुकुलन, बीजाणु जनन, खण्डी भवन एवं पुणरुद्भवन विधि द्वारा संम्पन्न होता है।
लाभ : नवजात संतति आनुवंशिक रूप से जनक के समान होती है एवं इसका दर तीव्र होता है तथा सभी संतति सभी गुणों में एक-दूसरे के समान होती है।
2. मदचक्र तथा ऋतुस्त्राव चक्र के बारे में स्पष्ट करें।
उत्तर : जानवरों में जनन प्रावस्था के दौरान अपरास्तनी मादा के अंडाशय की सक्रियता में चक्रित
तथा सहायक वाहिका और हॉर्मोन्स में परिवर्तन आने लगते हैं। नॉन प्राइमेट स्तनधारियों, जैसे- गाय, भेड़, कुत्ता, चूहा, बाघ, इत्यादि में जनन के दौरान ऐसे चक्रिय परिवर्तन होते हैं, इन्हें मदचक्र (ओएस्ट्स साइकिल) कहते हैं। प्राइमेटों जैसे- बन्दर, गोरीला, ऐप्स एवं मुनष्य में यह ऋतुस्राव चक्र कहलाता है। प्राकृतिक रूप में वनों में रहने वाले अधिकांश स्तनधानी अपने जनन प्रावस्था के दौरान अनुकूल परिस्थितियों में ऐसे चक्रों का प्रदर्शन करते हैं। इसी कारणों से इन्हें ऋतुनिष्ठ अथवा मौसमी प्रजनन कहते हैं।
3. एकसंकर क्रॉस के आधार पर मेण्डल के प्रतिपादित नियमों को लिखें।
उत्तर : एकसंकर क्रॉस के आधार पर मेंडल ने निम्नांकित नियमों को प्रतिपादित किया-
(i) युग्मित कारकों का नियम प्रत्येक लक्षण दो इकाई कारकों (ऐलील) द्वारा प्रदर्शित होते हैं जो समान गुण सूत्र पर समान स्थान पर स्थित होते हैं।
(ii) प्रभाविता का नियम किसी लक्षण के विभिन्न विशेषकों को प्रदर्शित करने वाले दो ऐलीलों (कारकों) में से एक अपने आपको प्रदर्शित करता है जिसे प्रभावी कारक कहते हैं और जो प्रदर्शित नहीं हो पाता है उसे अप्रभावी कारक कहते हैं।
(iii) पृथक्करण का नियम एक व्यष्टि में उपस्थित एक लक्षण के दो कारक मिश्रित नहीं होते हैं बल्कि युग्मक निर्माण के समय एक दूसरे से पृथक व स्पष्ट बने रहते हैं ताकि एक युग्मक एक लक्षण का केवल एक कारक ले जा सकें व हमेशा शुद्ध रहे।
4. डी०एन०ए० तथा आर० एन०ए० में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: उत्तर के लिए 2011 के प्रश्न-सख्या 9 देखें।
5. रासायनिक विकास के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर : रासायनिक विकास का सिद्धांत ओपेरिन एवं हाल्दाने ने प्रस्तुत की थी जिनके अनुसार आदि पृथ्वी पर जीवन की उत्पादित परमाणुओं को जोड़कर अणु बनने, रासायनिक अभिक्रिया द्वारा अणुओं से कार्बनिक यौगिकों का निर्माण फिर बड़े कार्बनिक अणु और उनके संघनन से प्रथम जीवन संरचना की उत्पत्ति होती है। जिसे बाद में यूरे एवं मिलर ने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया।
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6. रोग का प्रसार कैसे होता है? संक्षेप में लिखें।
उत्तर : रोगों में संक्रामक रोगों का ही प्रसार होता है। यह निम्नांकित तरीके से पूर्ण होता है-
(क) संक्रमित रोगी से सीधे सम्पर्क द्वारा जैसे- दाद। (
ख) रोगाणुवाहक जैसे मच्छर, मक्खी आदि द्वारा जैसे- मलेरिया।
(ग) संक्रमित पेय एवं खाद्य पदार्थों के ग्रहण द्वारा जैसे- हैजा।
7. कुक्कुट फार्म प्रबंधन का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर : मुर्गाफार्म में घरेलु मुर्गियो व तत्त्वों, तीतर आदि के देखभाल, उसका जनन क्रिया, लालन-पालन, उसके उत्पादों जैसे- मांस व अंडों के सफल प्रबंधन ही मुर्गी फार्म प्रबंधन कहलाता है। इसकी सफलता के लिए फार्म के क्षेत्रफल के हिसाब से मुर्गियों की संख्या रखना, मुर्गियों को रोगों से बचाव के लिए टीके का प्रयोग, साँपों, बिल्लियों एवं कुत्तों से बचाने की व्यवस्था करना, ठंड-गर्मी से बचाव की व्यवस्था करना तथा पौष्टिक आहार की उपलब्धता आवश्यक है।
8. प्लाज्मिड क्या है? प्लाज्मिड की संरचना तथा उपयोगिता संक्षेप में लिखें।
उत्तर : यह जीवाणु कोशिका में उपस्थित बाह्य नाभिकीय छोटा एवं वर्तुलाकार डी एन० ए० है जो कुछ एक्स्ट्रा क्रोमोजोमल जीन को धारण किए रहता है तथा स्वद्विगुणन क्षमताधारी होता है। जैसे PBR-322, PUC-10 आदि। इनकी लम्बाई लगभग 2700 pb होती है। इसमें द्विगुणन व उपस्थित स्थलन, सेलेव-टेबल मार्कर, क्लोनिंग केंद्र नामक भाग होता है।
9. ट्रांसजेनिक जन्तुओं से क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर : उत्तर के लिए 2012
(A) के प्रश्न-सख्या 9 देखें।
10. कुल आबादी का रूप क्या-क्या हैं? संक्षेप में लिखें।
उत्तर : ये रूप हैं
– (i) प्रसारशील समष्टि
(ii) ह्रासमान समष्टि एवं
(iii) स्थिर या परिपक्व समष्टि ।
11. जलोद्भिद्, मरुद्भिद् तथा समोद्भिद् के बारे में सोदाहरण लिखें।
उत्तर : जलोद्भिद् : वे पादप जो केवल जल या अत्यधिक नम मिट्टी में वृद्धि करते हैं, जलोद्भिद् कहलाते हैं। जैसे- कमल, जलकुम्भी आदि। मरुद्भिद् : वे पादप जो केवल जब बड़ी अधिक ताप/गर्मी या मरुभूमि में उगते एवं वृद्धि करते हों मरुद्भिद मरुद्भिद् कहलाते हैं जैसे- नागफनी।
समोद्भिद् : वे स्थलीय पादप जो न तो विशेष सूखे और न तो विशेष रूप से नम वातावरण के लिए अनुकूलित हों तथा जिन्हें वृद्धि के लिए साधारण जल की आवश्यकता हों समोद्भिद् कहलाती है। जैसे – पॉली गोनम, ब्रोमस आदि।