Mobile and Internet :
इंटरनेट के माध्यम से आमजन का जीवन आसान हो गया है क्योंकि इसके द्वारा हम बिना घर के बाहर गये ही अपना बिल जमा करना, फिल्म देखना, व्यापारिक लेन-देन करना, सामान खरीदना आदि काम कर सकते हैं। अब ये हमारे जीवन का एक खास हिस्सा बन चुका है हम कह सकते है कि इसके बिना हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में तमाम मुश्किलें का सामना करना पड़ सकता है।
इसकी सुगमता और उपयोगिता की वजह से, ये हर जगह इस्तेमाल होता है जैसे- कार्यस्थल, स्कूल, कॉलेज, बैंक, शिक्षण संस्थान, प्रशिक्षण केन्द्रों पर, दुकान, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, रेस्टोरेंट, मॉल और खास तौर से अपने घर पर हर एक सदस्यों के द्वारा अलग-अलग उद्देश्यों के लिये। जैसे ही हम अपने इंटरनेट सेवा प्रदाता को इसके कनेक्शन के लिये पैसे देते हैं उसी समय से हम इसका प्रयोग दुनिया के किसी भी कोने से एक हफ्ते या उससे ज्यादा समय के लिये कर सकते हैं।
Mobile and Internet
ये हमारे इंटरनेट प्लान पर निर्भर करता है। आज के अत्याधुनिक वैज्ञानिक युग में कंप्यूटर हमारे जीवन का मुख्य भाग बन गया है। इसके अभाव में आज हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते आज हम अपने रूम या ऑफिस में बैठे-बैठे देश-विदेश-जहाँ भी चाहें इंटरनेट द्वारा अपना संदेश भेज सकते हैं।
इंटरनेट के हमारे जीवन में प्रवेश के साथ ही, हमारी दुनिया बड़े पैमाने पर बदल गई है इसके द्वारा हमारे जीवन में कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक परिवर्तन हुए हैं। ये विद्यार्थियों, व्यापारियों, सरकारी एजेंसियों, शोध संस्थानों आदि के लिये काफी फायदेमंद है। इससे विद्यार्थी अपने पढ़ाई से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, व्यापारी एक जगह से ही अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं, इससे सरकारी एजेंसी अपने काम को समय पर पूरा कर सकती है तथा शोध संस्थान और शोध करने के साथ ही उत्कृष्ट परिणाम भी दे सकती है।
2. (क) उत्तर के लिए 2014 (A) के प्रश्न-संख्या 8 (क) (अथवा) देखें।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘ओ सदानीरा’ निबंध से समुद्धृत हैं। इसके लेखक
जगदीशचंद्र माथुर हैं।
चंपारन में बापू द्वारा स्थापित आश्रम विद्यालय को देखकर माथुरजी को बड़ा दुख पहुँचा, उसी आश्रम विद्यालय से बापू ने चंपारनवासियों में स्वतंत्रता की चेतना जगाने का प्रयास किया था। वह आश्रम आज (1962) उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। चंपारन के लोगों की मानसिकता पर दुःख व्यक्त करते हुए • माथुरजी कहते हैं कि उन्हें उस आश्रम को सुरक्षित रखना चाहिए था, क्योंकि वह आश्रम राष्ट्रीय सम्पत्ति है, इतिहास के एक उज्ज्वल पृष्ठ का गवाह है। ऐसा लगता है कि चंपारन के लोगों में अपनी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति कोई आस्था और श्रद्धा है ही नहीं। जैसे वे अपनी बड़ी-से-बड़ी निधियों को विस्मृत कर देने में पारंगत हों। राष्ट्रीय धरोहर हमारी प्रेरणा की स्रोत होती हैं। उन्हें विस्मृत करना अपने अस्तित्व को विस्मृत कर देने के समान है। विस्मृति हमारी विकलांग मानसिकता की परिचायक है।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता आधुनिक काल के प्रसिद्ध कवि रघुवीर सहाय हैं।
कवि रघुवीर सहाय ने आज के सत्ताधारी वर्ग के राजनेताओं पर व्यंग्य करते हुए लिखा है कि इनका काम केवल भाषण देना और पुरस्कार बाँटना ही रह गया है। ये जनता के प्रतिनिधि होकर भी जनता से दूर रहते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए तरह-तरह के तिकड़म किया करते हैं। वे पूरब-पश्चिम के नंगे-बूचे नरकंकालों को सिंहासन पर बैठाकर पुरस्कृत किया करते हैं ताकि विदेशों में उनके लिए भी पुरस्कारों का जुगाड़ हो सके।
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(घ) प्रस्तुत काव्यावतरण हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता से लिया गया है। यह कविता सुभद्राकुमारी चौहान के प्रतिनिधि काव्य संकलन ‘मुकुल’ से ली गई है।
सुभद्रा कुमारी चौहान पुत्र वियोग में तड़पती हुई कहती हैं कि आज सारी दिशाएँ (दसों दिशाएँ) प्रसन्न हैं और विश्व में सर्वत्र उल्लास-ही-उल्लास है। सर्वना है कि आज सारी दिशाएँ आदि उल्लास के
वातावरण में मैं ही विपन्न (उदास) और उल्लासविहीन हूँ। मेरा ‘खिलौना’ मुझसे दूर चला गया है। उसके अभाव में मेरी चारों तरफ छाए उल्लास का कोई अर्थ नहीं है। सुभद्रा कुमारी चौहान को अपना जीवन नीरस, जटिल और सूना क्या लग रहा है?